रजगमार और सिंघाली खदान को फिर से शुरु करने लोगो से मांगे गए सुझाव

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रजगामार और सिंघाली खदान को पुर्नवैधीकरण का प्रमाण पत्र जारी होने के बाद इसका संचालन निजी कंपनियों को दिया जाएगा। एमडीओ मोड और रेवेंयू शेयरिंग आधार पर निजी कंपनी द्वारा खदान से कोयला उत्पादन किया जाएगा। रजगामार खदान के लिए कंटीव्यूअर्स माइनर मशीन भी मंगाई जा रही है, ताकि आधुनिक ढंग से कोयले की निकासी की जा सके।

 

केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बढ़ाई प्रक्रिया

• एमडीओ मोड में संचालित होंगी खदानें

• सिंघाली खदान का लीज क्षेत्र 862.289 हेक्टेयर है।

साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की बंद पड़ी भूमिगत रजगामार एवं सिंघाली खदान पुनः चालू करने की कवायद शुरू कर दी गई है। पर्यावरण मंत्रालय से एसईसीएल ने अनुमति मांगी थी, इस पर केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने खदान के पुर्नवैधीकरण की सहमति के आवेदन को आगे बढ़ाया है और छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल ने आमजनों से आपत्ति और सुझाव मंगाए हैं।

कोल इंडिया की संबद्ध कंपनी एसईसीएल कोरबा अंतर्गत रजगामार की छह-सात नंबर खदान पिछले 10 वर्षों से बंद है। जबकि खदान में कोयला का भंडार है। कोरबा क्षेत्र की इस खदान को पुनः उत्पादन में लाने की कोशिश की गई थी, पर पर्यावरण मंजूरी नहीं मिलने से प्रक्रिया लटक गई थी। हालांकि प्रबंधन ने अपने स्तर पर प्रयास कम नहीं किया और लगातार पत्राचार किया। इसके लिए केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के समक्ष पुर्नवैधीकरण की सहमति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया था।

इसी परिप्रेक्ष्य में छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल ने आठ अगस्त, 2024 को विज्ञापन जारी कर खदान के पुर्नवैधीकरण के लिए आमजनों से आपत्तियां और सुझाव मांगे हैं। तीस दिवस के भीतर आपत्तियां और सुझाव प्रस्तुत करना होगा। इसके बाद पुर्नवैधीकरण की मंजूरी दे दी जाएगी। यहां बताना होगा कि रजगामार खदान का लीज क्षेत्रफल 3486.577 हेक्टेयर है। खदान की सालाना उत्पादन क्षमता 0.45 मिलियन टन है। इस खदान से वर्ष 1995 में उत्पादन शुरू हुआ था। इसी तरह एसईसीएल की कोरबा परियोजना की सिंघाली खदान को भी पुनः चालू किया जाएगा। इस खदान के लिए भी पुर्नवैधीकरण का प्रमाण पत्र जारी करने छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा आमजनों से आपत्तियां और सुझाव मांगे गए हैं। सिंघाली खदान का लीज क्षेत्र 862.289 हेक्टेयर है। इस खदान से भी वर्ष 1995 में उत्पादन शुरू हुआ था।

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